शुक्रवार, 25 जुलाई 2008

वह पागल थी ...............

वह पागल थी ...............

रात्रि लगभग दो बजे किसी ने दरवाजे पे दस्तक दी। देखा तो दरवाजे पे एक बूढी औरत फटे हाल कपडो में खडी थी . उसने इशारों से मुझसे खाने के लिए कुछ देने को कहा। उसके हाव भाव से लग रह था, कि उसकी मानसिक स्थित ठीक नही है। मैने रसोईघर में जाकर देखा, पाँच रोटिया व थोड़ी सी सब्जी बची थी। वह लाकर मैने उसे दे दिया, और खाने के लिए कहा। उसने उगली से रोड की तरफ इशारा किया, ओर रोटी ले कर चल दी। उत्सुकता बस मै भी उसके पीछे चल पड़ा। रोड में बिजली के खंभे के पास एक कुत्ता बैठा हुआ था। कुत्ते की गर्दन में घाव था, ओर उससे बदबू भी आ रही थी। वह जाकर कुत्ते के पास बैठ गयी, ओर रोटी के टुकडे सब्जी के साथ कुत्ते को खिलाने लगी। पूरी रोटियां कुत्ते को खिलाने के बाद ,उसने अपनी धोती से एक टुकडा फाड़ कर निकाला ओर कुत्ते की गर्दन में बाध दिया। और खुद जाकर एक आम के पेड़ के नीचे सो गयी। मै खुद ही समझ नही पा रहा था कि इसे क्या समझू, पागलपन या ममता का प्रतीक.............

vikram

1 टिप्पणी:

रंजू भाटिया ने कहा…

insaniyat aur pyaar jo shyad ab bahut kam logo mein bacha hai wahi is pagli mein bhi hai baki tabhi to wah pagli hai ..acha laga isko padhna ,